ममता की छाँव को कभी भुलाना नहीं कभी एक माँ को रुलाना नहीं । ममता की छाँव को कभी भुलाना नहीं कभी एक माँ को रुलाना नहीं ।
निकला था एक गीत मन के द्वार से, कि खो जाऊँ आज बस इसी शाम में। निकला था एक गीत मन के द्वार से, कि खो जाऊँ आज बस इसी शाम में।
तब जा कर यह नारी देखो एक साड़ी में है लिपटी। तब जा कर यह नारी देखो एक साड़ी में है लिपटी।
मॉं-पिता दोनों में ही, संसार छिपा होता है। मॉं-पिता दोनों में ही, संसार छिपा होता है।
कितना भी हो जाऊँ बडा, 'माँ !'मेैं आज भी तेरा बच्चा हूँ। कितना भी हो जाऊँ बडा, 'माँ !'मेैं आज भी तेरा बच्चा हूँ।
खंडहर की भूलभुलईया थी, लुका-छुपी की बाज़ी थी खंडहर की भूलभुलईया थी, लुका-छुपी की बाज़ी थी